महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष शुभ संयोग में करें शिव पूजन। शिवरात्रि पर शिवलिंग पूजन के दौरान न करें ये गलतियां? जानने के लिए पढ़ें।
हिन्दू पंचांग के अनुसार (उत्तर भारतीय पंचांग), महाशिवरात्रि को प्रतिवर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। भगवान शिव की उपासना का दिन महाशिवरात्रि को दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग) के अनुसार, माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पूर्णिमान्त और अमावस्यान्त दोनों ही पंचांगों के अनुसार एक ही तिथि पर पड़ती है, इसलिए अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार भी महाशिवरात्रि की तारीख़ समान रहती है इसमें कोई बदलाव नहीं आता हैं।
महाशिवरात्रि पर भगवान शिव एवं माँ पार्वती की पूजा मुहूर्त के विषय में मान्यता हैं कि इस दिन शिव-शक्ति की आराधना चारों पहर में की जा सकती हैं। इस साल शिव और शक्ति की उपासना का महापर्व महाशिवरात्रि 1 मार्च 2022 को मंगलवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन चतुर्दशी तिथि का आरंभ 1 मार्च को रात्रि 03 बजकर 15 मिनट पर होगा और इसकी समाप्ति 2 मार्च को रात्रि 00 बजकर 59 मिनट पर होगी।
महाशिवरात्रि पूजा मुहूर्त
निशिथ काल पूजा मुहूर्त: 24:08 से 24:58 (2 मार्च)
शिवरात्रि पारण समय: 02 मार्च को सुबह 06:45 बजे,
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, वर्ष 2022 की महाशिवरात्रि बेहद ख़ास होने वाली हैं क्योंकि इस साल धनिष्ठा नक्षत्र में परिघ योग बन रहा हैं। धनुष्ठा के बाद शतभिषा नक्षत्र भी रहेगा, वही परिध योग के बाद शिव योग लग जाएगा।
परिध योग को शत्रुओं पर विजय हासिल करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि परिध योग में शत्रुओं के विरुद्ध बनाई गई रणनीतियों में सफलता की प्राप्ति होती है।
इस साल महाशिवरात्रि पर ग्रहों के विशेष योग का निर्माण हो रहा है। 12वें भाव में मकर राशि में पंचग्रही योग बन रहा है, साथ ही इस राशि में मंगल और शनि के साथ बुध, शुक्र और चंद्रमा रहेंगे. इसके विपरीत, लग्न में कुंभ राशि में सूर्य और गुरु की युति बनी रहेगी। चौथे भाव में राहु वृषभ राशि में मौजूद रहेगा, जबकि केतु दसवें भाव में वृश्चिक राशि में रहेगा।
भगवान शंकर और माता पार्वती को समर्पित एक पवित्र त्यौहार है महाशिवरात्रि जो पूरे देश में आस्था ओर विश्वास से मनाया जाता है। इस दिन त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) में से प्रमुख महादेव की पूजा करने का विधान हैं। पुराणों, वेदों और हिन्दू धर्मग्रंथों में भगवान शिव को महाकाल के नाम से जाना जाता है जो सदैव अपने भक्तों की रक्षा काल से भी करते है। वैसे तो, शिव आराधना के लिए सोमवार, सावन, शिवरात्रि का विशेष महत्व है, लेकिन महाशिवरात्रि का दिन शिव एवं पार्वती पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है।
इस दिन शिव भक्त अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए उनका पूजन एवं व्रत करते हैं। शिवरात्रि का त्यौहार साल में दो बार आता हैं, एक श्रावण मास में और दूसरी फाल्गुन मास में मनाई जाती हैं। फाल्गुन मास की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता हैं। इस दिन सुबह से ही मंदिरों में शिव भक्तों की भीड़ दिखाई देती है। सभी भक्त प्रभु की पूजा-अर्चना में जुट जाते हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था इसलिए यह दिन विवाहित जोड़ों द्वारा सुखी-वैवाहिक जीवन और अविवाहित कन्याओं द्वारा एक सुयोग्य पति की कामना करने के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है।
वैदिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शंकर अर्थात स्वयं शिव ही चतुर्दशी तिथि के स्वामी हैं। यही वज़ह है कि प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, चतुर्दशी तिथि को अत्यंत शुभ माना गया है। गणित ज्योतिष की गणना के अनुसार, महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण में होते हैं, साथ ही ऋतु-परिवर्तन भी हो रहा होता है।
ज्योतिष में चतुर्दशी तिथि से सम्बंधित पौराणिक मान्यता है कि चतुर्दशी तिथि पर चंद्रमा काफ़ी कमज़ोर होते हैं। भगवान शंकर ने चंद्र देव को अपने मस्तक पर धारण किया है। अतः इस दिन शिवजी की पूजा एवं आराधना से व्यक्ति का चंद्र मज़बूत होता है जो व्यक्ति के मन का प्रतिनिधित्व करता है।
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महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक, मंत्र-जप और व्रत आदि धार्मिक अनुष्ठान किये जाते है, लेकिन इस दिन शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए कैसे करें भगवान शंकर का पूजन, आइये जानते है।
महाशिवरात्रि पर महादेव का पूजन लिंग रूप में करने का विधान हैं। शिवरात्रि पर दिनभर उपवास करना उत्तम माना जाता है। शिवरात्रि का अर्थ होता है शिव की रात, इस शब्द की उत्पति दो शब्दों से मिलकर हुई है 'शिव' और 'रात्रि'। महाशिवरात्रि के दिन मध्यरात्रि में शिवजी और पार्वती का विवाह होता है।
इस दिन सभी शिव मंदिरों में शिव भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है जो अपने आराध्य का आशीर्वाद पाने के लिए उनका व्रत और पूजन करते हैं और रात्रिकाल में जागरण करते हैं। महाशिवरात्रि अन्य हिन्दू त्यौहारों से बिल्कुल विपरीत रात्रि में मनाया जाता है। यह दिन अत्यंत शुभ होता है क्योंकि महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ और आदिशक्ति माँ पार्वती की दिव्य शक्तियां संयुक्त रूप में आकर अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
महाशिवरात्रि से सम्बंधित अनेक कथाओं का वर्णन मिलता है, लेकिन जो कथा हम आपको बताने जा रहे है वह सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, पर्वतराज हिमालय की पुत्री देवी पार्वती भगवान शिव को वर रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या में लीन हो गई। हज़ारों वर्ष तक की गई घनघोर तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेशंकर ने पार्वती जी से वरदान मांगने को कहा। पार्वती जी ने वरदान में कहा, वह भगवान शिव की अर्धांगिनी जन्म-जन्मांतर तक बनकर रहना चाहती है। देवी पार्वती को स्वीकार करते हुए भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।
इस कथा के परिणामस्वरूप फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। उस समय से ही महाशिवरात्रि को पवित्र माना जाता है।
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