श्री सरस्वती यंत्र

श्री सरस्वती यंत्र

वैदिक ज्योतिष में सरस्वती यंत्र का उपयोग बौद्धिक शक्ति, एकाग्र शक्ति, ज्ञान एवं रचनात्मक शक्ति को प्राप्त करने के लिए होता आ रहा है। साथ ही ज्ञान की देवी  मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए श्री सरस्वती यंत्र (Saraswati Yantra)की पूजा करनी चाहिए। साथ ही जिन विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में न लगता हो, बार-बार याद करने पर भी भूल जाता हो, एकाग्रता की कमी हो या परीक्षा का भय हमेशा सताता रहता हो तो ऐसे जातकों को सरस्वती यंत्र को धारण करना चाहिए। इसको धारण करने से विद्यार्थियों की बुद्धि प्रखर होती है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त होने के आसार बढ़ जाते हैं। वहीं कला, संगीत और वाणी कौशल के क्षेत्र में काम करने वाले जातकों के लिए यह यंत्र काफी फलदायी होता है। 

सरस्वती यंत्र के लाभ

संगीत व विद्या की देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सरस्वती यंत्र की पूजा करनी चाहिए। 
इस यंत्र को प्रतिष्ठित करने से बैद्धिक शक्ति, एकाग्र शक्ति और ऱचनात्मक शक्ति सशक्त होती है। 
यदि आप परीक्षा में सफलता पाना चाहते हैं तो इस यंत्र के समक्ष ''ऊॅं ऐं महासरस्वत्यै नम:'' का एक माला जाप करना चाहिए। 
इस यंत्र को स्थापित करने से बुद्धि प्रखर होती है और एकाग्रता आती है। 
यदि आपके जीवन में लगातार बाधाएं आ रही हैं तो आपको सरस्वती यंत्र की स्थापना करनी चाहिए। 
कुंडली में स्थित विभिन्न प्रकार के दोषों और कष्टों को दूर करने के लिए यह यंत्र काफी कारगर है। 

ध्यान रखने योग्य बातें

श्री सरस्वती यंत्र की स्थापना से प्राप्त होने वाले लाभ किसी जातक को तभी प्राप्त हो सकते हैं। जब इस यंत्र को शुद्धिकरण, प्राण प्रतिष्ठा और ऊर्जा संग्रही की प्रक्रियाओं के माध्यम से विधिवत बनाया गया हो। साथ ही सरस्वती यंत्र को खरीदने के पश्चात किसी अनुभवी ज्योतिषी द्वारा अभिमंत्रित करके उसे घऱ की सही दिशा में स्थापित करना चाहिेए। अभ्यस्त और सक्रिय श्री सरस्वती यंत्र (Saraswati Yantra) को बुधवार के दिन स्थापित करना चाहिए लेकिन बसंत पंचमी के दिन स्थापित करने से सर्वाधिक लाभ प्राप्त होता है। यदि ज्ञान की देवी को अतिशीघ्र प्रसन्न करना चाहते हैं तो अनार की कलम या अष्टगंध की स्याही से भोजपत्र पर यह यंत्र बनाकर पूजा करनी चाहिए।


सरस्वती यंत्र स्थापना विधि

श्री सरस्वती यंत्र की स्थापना के दिन सबसे पहले प्रातकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर इस यंत्र के सामने दीप-धूप प्रज्जवलित करना चाहिए। तत्पश्चात श्री सरस्वती यंत्र को गंगाजल या कच्चे दूध से अभिमार्जित करना चाहिए इसके पश्चात 11 या 21 बार श्री गायंत्री मंत्र "ॐ ह्रीं श्रीं सरस्वत्यै नमः। ॐ ऎं सरस्वत्यै ऎं नमः।।” मंत्र का जाप करना चाहिए। वहीं अधिक शुभ फल पाने के लिए मां सरस्वती से प्रार्थना करनी चाहिए। इसके बाद निश्चित किए गए स्थान पर यंत्र को स्थापित कर देना चाहिए। इस यंत्र को स्थापित करने के पश्चात इसे नियमित रूप से धोकर इसकी पूजा करें ताकि इसका प्रभाव कम ना हो। यदि आप इस यंत्र को बटुए या गले में धारण करते हैं तो स्नानादि के बाद अपने हाथ में यंत्र को लेकर उपरोक्त विधिपूर्वक इसका पूजन करें।  

नोट- कहा जाता है कि इस यंत्र का प्रभाव 4 वर्ष 4 माह तक ही रहता है इसलिए निश्चित समय अंतराल पर इसे बदलते रहे। यंत्र की सिद्धि के लिए अनुभवी ज्योतिष की सलाह अवश्य लें। 

श्री सरस्वती यंत्र का बीज मंत्र - "ॐ  ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।"


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