Apara Ekadashi 2025: एकादशी हिंदू पंचाग के अनुसार प्रत्येक मास की ग्यारस यानी ग्यारहवीं तिथि एकादशी कहलाती है जिसका धार्मिक रूप से बहुत महत्व होता है। हिंदू धर्म में एकादशी के दिन व्रत उपवास पूजा आदि करना बहुत ही पुण्य फलदायी माना जाता है। एक हिंदू वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं। मलमास या कहें अधिकमास की एकादशियों सहित इनकी संख्या 26 हो जाती है। प्रत्येक मास की दोनों एकादशियों का अपना विशेष महत्व है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशियां तो बहुत ही खास मानी जाती हैं। हालांकि समस्त एकादशी में ज्येष्ठ मास की शुक्ल एकादशी जिसे निर्जला एकादशी कहते हैं सर्वोत्तम मानी जाती है लेकिन ज्येष्ठ महीने की ही कृष्ण एकादशी भी कमतर नहीं मानी जा सकती। इस एकादशी को अपरा (अचला) एकादशी कहा जाता है। आइये जानते हैं अपरा एकादशी की व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में।
अपरा या कहें अचला एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का उपवास रखने से पातक से भी पातक मनुष्य के पाप कट जाते हैं और अपार खुशियां मिलती हैं। मकर संक्रांति के समय गंगा स्नान, सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र और शिवरात्रि के समय काशी में स्नान करने से जो पुण्य मिलता है उसके समान पुण्य की प्राप्ति अपरा एकादशी के व्रत से होती है।
अपरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य बताने वाली कहानियां पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। एक कथा के अनुसार किसी राज्य में महीध्वज नाम का एक बहुत ही धर्मात्मा राजा था। राजा महीध्वज जितना नेक था उसका छोटा भाई वज्रध्वज उतना ही पापी था। वज्रध्वज महीध्वज से द्वेष करता था और उसे मारने के षड़यंत्र रचता रहता था। एक बार वह अपने मंसूबे में कामयाब हो जाता है और महीध्वज को मारकर उसे जंगल में फिंकवा देता है और खुद राज करने लगता है। अब असामयिक मृत्यु के कारण महीध्वज को प्रेत का जीवन जीना पड़ता है। वह पीपल के पेड़ पर रहने लगता है। उसकी मृत्यु के पश्चात राज्य में उसके दुराचारी भाई से तो प्रजा दुखी थी ही साथ ही अब महीध्वज भी प्रेत बनकर आने जाने वाले को दुख पंहुचाते।
लेकिन उसके पुण्यकर्मों का सौभाग्य कहिये की उधर से एक पंहुचे हुए ऋषि गुजर रहे थे। उन्हें आभास हुआ कि कोई प्रेत उन्हें तंग करने का प्रयास कर रहा है। अपने तपोबल से उन्होंनें भूत के भूत को देख लिया और उसका भविष्य सुधारने का जतन सोचने लगे। सर्वप्रथम उन्होंने प्रेत को पकड़कर उसे अच्छाई का पाठ पढ़ाया फिर उसके मोक्ष के लिये स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत रखा और संकल्प लेकर अपने व्रत का पुण्य प्रेत को दान कर दिया। इस प्रकार उसे प्रेत जीवन से मुक्ति मिली और बैकुंठ गमन कर गया।
आज का पंचांग ➔ आज की तिथि ➔ आज का चौघड़िया ➔ आज का राहु काल ➔ आज का शुभ योग ➔ आज के शुभ होरा मुहूर्त ➔ आज का नक्षत्र ➔ आज के करण
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार एक राजा ने अपने राज्य में एक बहुत ही मनमोहक उद्यान तैयार करवाया। इस उद्यान में इतने मनोहर पुष्प लगते कि देवता भी आकर्षित हुए बिना नहीं रह सके और वे उद्यान से पुष्प चुराकर ले जाते। राजा चोरी से परेशान, लगातार विरान होते उद्यान को बचाने के सारे प्रयास विफल नज़र आ रहे थे। अब चोर कोई इंसान करे तो पकड़ में आये देवता दबे पांव आते और अपना काम कर निकल जाते किसी को कानों कान खबर नहीं होती। अब राजपुरोहितों को याद किया गया। सभी ने अंदाज लगाया कि है तो किसी दैविय शक्ति का काम किसी इंसान की हिम्मत तो नहीं हो सकती उन्होंने सुझाव दिया कि भगवान श्री हरि के चरणों में जो पुष्प हम अर्पित करते हैं उन्हें उद्यान के चारों और डाल दिया जाये।
देखते हैं बात बनती है या नहीं। और तो कोई विकल्प था नहीं ऐसा ही किया गया। देवता और अप्सराएं नित्य की तरह आये लेकिन दुर्भाग्य से एक अप्सरा का पैर भगवान विष्णु को अर्पित किये पुष्प पर रखा गया जिससे उसके समस्त पुण्य समाप्त हो गये और वह अन्य साथियों के साथ उड़ान न भर सकी। सुबह होते ही इस अद्वितीय युवती को देखकर सब हैरान राजा को खबर की गई राजा भी देखते ही सब भूल कर मुग्ध हो गये। अप्सरा ने अपना अपराध कुबूल करते हुए सारा वृतांत कह सुनाया और अपने किये पर पश्चाताप किया। तब राजा ने कहा कि हम आपकी क्या मदद कर सकते हैं। तब उसने कहा कि यदि आपकी प्रजा में से कोई भी ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का उपवास रखकर उसका पुण्य मुझे दान कर दे तो मैं वापस लौट सकती हूं। राजा ने प्रजा में घोषणा करवा दी ईनाम की रकम भी तय कर दी लेकिन कोई उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली।
राजा पुरस्कार की राशि बढाते-बढ़ाते आधा राज्य तक देने पर आ गया लेकिन कोई सामने नहीं आया। किसी ने एकादशी व्रत के बारे में तब तक सुना भी नहीं था। न राजा ही जानता था न पुरोहित प्रजा में जानने का तो सवाल ही नहीं होता। परेशान अप्सरा ने चित्रगुप्त को याद किया तब अपने बही खाते से देखकर जानकारी दी कि इस नगर में एक सेठानी से अंजाने में एकादशी का व्रत हुआ है यदि वह संकल्प लेकर व्रत का पुण्य तुम्हें दान कर दे तो बात बन सकती है। उसने राजा को यह बात बता दी। राजा ने ससम्मान सेठ-सेठानी को बुलाया। पुरोहितों द्वारा संकल्प करवाकर सेठानी ने अपने व्रत का पुण्य उसे दान में दे दिया। जिससे अप्सरा राजा व प्रजा का धन्यवाद कर स्वर्गलौट गई। वहीं अपने वादे के मुताबिक सेठ-सेठानी को राजा ने आधा राज्य दे दिया। राजा अब तक एकादशी के महत्व को समझ चुका था उसने आठ से लेकर अस्सी साल तक राजपरिवार सहित राज्य के सभी स्त्री-पुरुषों के लिये वर्ष की प्रत्येक एकादशी का उपवास अनिवार्य कर दिया।
✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी
संबंधित लेख: निर्जला एकादशी | कामदा एकादशी | पापमोचिनी एकादशी | कामिका एकादशी का व्रत | योगिनी एकादशी | देवशयनी एकादशी | इंदिरा एकादशी | देवोत्थान एकादशी | सफला एकादशी व्रत | मोक्षदा एकादशी | विजया एकादशी | जया एकादशी | रमा एकादशी | षटतिला एकादशी | उत्पन्ना एकादशी | अजा एकादशी | पुत्रदा एकादशी | आमलकी एकादशी | वरुथिनी एकादशी | मोहिनी एकादशी