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Annapurna Devi: अन्नपूर्णा देवी हिन्दुओं द्वारा पूजित एक महान देवी हैं। उनका दूसरा नाम ‘अन्नदा’ है। वे शक्ति का ही एक रूप मानी जाती हैं। हिन्दू धर्म में अन्नपूर्णा देवी का अत्यंत विशेष स्थान है। इन्हें माँ जगदम्बा का वह स्वरूप माना गया है जिससे संसार का पालन-पोषण होता है। ‘अन्नपूर्णा’ का शाब्दिक अर्थ है- अन्न की अधिष्ठात्री देवी, अर्थात वह शक्ति जिसके आशीर्वाद से समस्त सृष्टि को भोजन प्राप्त होता है।
सनातन धर्म की मान्यता है कि प्रत्येक प्राणी को भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है। यही अन्नपूर्णा देवी शाकम्भरी देवी के नाम से भी विख्यात हैं। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश के एक छोर पर माता अन्नपूर्णा काशी में विराजमान हैं, तो दूसरे छोर पर सहारनपुर के शिवालिक पर्वत पर माँ शाकम्भरी का विशाल धाम स्थित है।
कलियुग में माँ अन्नपूर्णा की पुरी काशी है, परन्तु सम्पूर्ण जगत् उनके नियंत्रण में माना गया है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के अन्नपूर्णाजी के आधिपत्य की कथा अत्यंत रोचक है। भगवान शिव, पार्वती के विवाह के बाद जब कैलाश चले गए, तब देवी ने अपने मायके हिमालय में रहने की बजाय अपने पति की नगरी काशी में निवास की इच्छा व्यक्त की। तब महादेव उन्हें अपने सनातन गृह अविमुक्त क्षेत्र (काशी) ले आए।
उस समय काशी एक महाश्मशान की तरह निर्जन थी। माता पार्वती को यह उपयुक्त न लगा, क्योंकि एक गृहस्थ देवी के लिए ऐसा स्थान ठीक नहीं था। तब यह संकल्प हुआ कि सत्य, त्रेता और द्वापर युगों में काशी श्मशान रहेगी, और कलियुग में यह अन्नपूर्णा की पुरी बनकर बसेगी। इसी कारण आज काशी का मुख्य देवीपीठ अन्नपूर्णा मंदिर है।
स्कन्दपुराण के काशीखंड में लिखा है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और माँ भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। इसलिए काशीवासियों के योग-क्षेम का भार माता अन्नपूर्णा पर है। ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं, और जनमानस भी इन्हें भवानी का ही अन्नपूर्णा रूप मानता है।
श्रद्धालुओं का विश्वास है कि माँ अन्नपूर्णा की नगरी काशी में कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सोता। अन्नपूर्णा माता की उपासना से पाप नष्ट होते हैं, संकट दूर होते हैं और लंबे समय से चली आ रही दरिद्रता भी समाप्त होती है। ये भक्तों को सांसारिक सुख और मोक्ष दोनों प्रदान करती हैं। इसलिए ऋषि-मुनि अन्नपूर्णा माता स्तुति करते हुए कहते हैं-
शोषिणी सर्वपापानां, मोचनी सकलापदाम्।
दारिद्र्यदामनी नित्यं, सुख-मोक्ष-प्रदायिनी॥
स्कन्द पुराण और शिव पुराण के अनुसार ‘अन्न’ केवल भोजन नहीं, बल्कि ईश्वरीय प्रसाद है। माता अन्नपूर्णा सिखाती हैं कि अन्न ही जीवन है और दूसरों को भोजन कराना सबसे महान दान है।
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने संसार को ‘माया’ बताया। यह सुनकर देवी पार्वती ने संसार से भोजन हटा लिया। परिणामस्वरूप पृथ्वी पर भयानक अकाल पड़ गया। तब भगवान शिव को ज्ञात हुआ कि भोजन कोई माया नहीं, बल्कि जीवन का आधार है। उसी समय देवी अन्नपूर्णा के रूप में प्रकट होकर काशी के लोगों को भोजन प्रदान करने लगीं। तभी से वह समस्त जगत की भोजनदाता मानी जाती हैं।
हिन्दू धर्म में अन्न को दिव्य स्वरूप माना गया है, और भोजन ग्रहण करने से पहले प्रार्थना करना एक प्राचीन परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार ‘अन्नम्’ जीवन का आधार है और शरीर के पाँच कोशों में से सबसे बाहरी अन्नमय कोश का पोषण भोजन से ही होता है। जो व्यक्ति भोजन के महत्व को समझता है, वह संसार में कर्तव्य निभाते हुए अंततः ब्रह्म- परम सत्य- की अनुभूति की दिशा में आगे बढ़ता है। इसी कारण अन्नदान को सर्वोच्च दान कहा गया है और विष्णु धर्मोत्तर, अग्नि पुराण, पद्म पुराण, कूर्म पुराण, नंदी पुराण और वायु पुराण जैसे ग्रंथों में इसे पुण्य का सर्वोत्तम मार्ग बताया गया है। देवी अन्नपूर्णा को भोजन व समृद्धि की अधिष्ठात्री माना जाता है। शिव पुराण की कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने संसार को मायिक कहा, तब माता पार्वती ने समस्त अन्न को लुप्त कर दिया। अकाल उत्पन्न होने पर शिव ने भोजन के महत्व को समझा और देवी अन्नपूर्णा ने प्रकट होकर काशी के लोगों को भोजन कराया।
अन्नपूर्णा देवी की आराधना उनके सहस्रनाम और एक–सौ–आठ नामों के पाठ से की जाती है। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित अन्नपूर्णा स्तोत्र देवी की करुणा और पालनकर्ता स्वरूप की स्तुति करता है। मराठी परंपरा में विवाह से पूर्व वधू को उसकी माता अन्नपूर्णा और बालकृष्ण की धातु प्रतिमाएँ देती है, जिन्हें वधू चावल और अनाज अर्पित कर पूजती है। इस विधि को गौरी हरप कहा जाता है। वधू अपने भावी गृह का चित्र बनाकर उस पर देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति स्थापित करती है ताकि नए घर में सदैव अन्न, सौभाग्य और समृद्धि बनी रहे।
मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को अन्नपूर्णा जयंती बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। इस पवित्र दिन मां अन्नपूर्णा और भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। भक्त जन देवी की आराधना करके समृद्धि, अन्न-वृद्धि और कृपा की कामना करते हैं। घरों में विशेष भोजन बनाकर देवी को भोग लगाया जाता है और पूरे परिवार के साथ प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
अन्नपूर्णा देवी की पूजा अत्यंत सरल, पवित्र और कल्याणकारी मानी जाती है। भक्त प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध भाव से देवी की आराधना करते हैं-
काशी में इस दिन अन्नपूर्णा मंदिर में विशाल भंडारा का आयोजन होता है। ऐसा माना जाता है कि आज के दिन स्वयं भगवान शिव, माता अन्नपूर्णा से भिक्षा ग्रहण करते हैं, जो भोजन की दिव्यता और उसकी अनिवार्यता का अद्भुत प्रतीक है।