सूर्य देव

सूर्य देव

Surya Dev: अगर सामान्य रूप से देखा जाए तो सूर्य एक चमकने वाला ग्रह है, जो धरती को प्रकाशमय बनाता है। लेकिन हिंदू धर्म में सूर्य को देवता का दर्जा दिया जाता है। इन्हें ऊर्जा, प्रकाश और जीवन के आधार के रूप में देखा जाता है। ज्योतिष में भी सूर्य को सभी नौ ग्रहों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह जीवन में आत्मविश्वास, स्वास्थ्य और सफलता के कारक माने जाते हैं। 

भारत में सूर्य की देवता के रूप पूजा करने की परंपरा बहुत पुरानी है। चाहें दैनिक पूजा हो या कोई बड़े से बड़ा त्योहार उनकी उपासना हर घर और संस्कृति में की जाती है। ऐसी हो सकता है कि पूजा का ढंग या रूप अलग हो लेकिन उनकी मान्यता उतनी ही होती है। 

मंत्र जाप हो या योग सभी में सूर्य का महत्व बताया जाता है। आज यहां पर आप सूर्य देव (Surya God) के बारे में जानेंगे। जैसे उनका जन्म कब हुआ, उन्हें देवता के रूप में क्यों पूजा जाता है और वो आपके जीवन पर क्या-क्या प्रभाव डालते हैं। 

कौन-हैं सूर्य देव ? (Kaun Hain Surya Dev)

हिंदुओं के पुराने ग्रंथों में सूर्य देव की उत्पत्ति को बहुत खास स्थान दिया गया है। ऋग्वेद हो, पुराण हों या फिर महाभारत और रामायण जैसी महाकथाएँ, हर जगह सूर्य को एक तेज और जीवन देने वाली शक्ति के रूप में बताया गया है। हिंदू मान्यता के अनुसार सूर्य, ऋषि कश्यप और अदिति के पुत्र हैं। देवी अदिति को देवमाता माना जाता है, जिन्हें सभी 12 आदित्यों की जननी कहा जाता है। उनमें से सबसे प्रमुख और प्रभावशाली सूर्य देव हैं। 

ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव का प्रकट होना सिर्फ एक जन्म नहीं, बल्कि सृष्टि में रोशनी और जीवन की शुरुआत का संकेत था। उन्हें ऐसी शक्ति माना गया जिसने दुनिया को चलने की ताकत दी। उन्हें अक्सर सात घोड़ों वाले रथ पर दर्शाया जाता है। उनके सिर पर मुकुट और नीचे सात घोड़ों वाला रथ यह चित्र सिर्फ सुंदर नहीं, बल्कि गहरा अर्थ भी रखता है। उनके रथ के सात घोड़े इन्द्रधनुष के सात रंगों का संकेत देते हैं। यही सात घोड़े सप्ताह के सात दिनों से भी जुड़ते हैं, जो समय और प्रकृति के चक्र को दर्शाते हैं।

सूर्य देव के विशेष गुण (Surya Dev Ke Gun)

वैसे तो सूर्य के ऐसे सैंकड़ों गुण हैं जो उन्हें विशेष बनाते हैं। बात चाहें विज्ञान की हो, धर्म की हो, या आध्यात्म की हर स्तर पर उनका प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण है। तो चलिए कुछ खास गुणों पर नज़र डालते हैं, जिन्हें रोज़मर्रा की जिंदगी से भी जोड़ा जाता है-

रौशनी और बल का प्रतीक

सूर्य की तेज रोशनी अडिग ऊर्जा और साहस का संकेत मानी जाती है। जो भी कठिनाई हो, सूर्य की तरह स्थिर रहना और आगे बढ़ना, यही संदेश इसमें छिपा है।

ज्ञान का स्रोत 

ऐसा कहा जाता है कि सूर्य अंधकार को हटाता है। इसका मतलब सिर्फ रोशनी नहीं, बल्कि भ्रम और अज्ञानता को दूर करके मन को साफ दिशा दिखाना भी है।

स्वास्थ्य और जीवन शक्ति 

सूर्य को जीवनदायी शक्ति माना जाता है। आपकी शारीरिक ऊर्जा, उत्साह और प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में सूर्य की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है।

न्याय और धर्म के रक्षक 

अदिति पुत्र होने के कारण सूर्य को धर्म की रक्षा करने वाला भी माना जाता है। वह सही और गलत के बीच स्पष्ट अंतर दिखाने वाले देवता माने जाते हैं।   

मानसिक शांति और आत्मविश्वास 

बहुत से साधक मानते हैं कि सूर्य की ऊर्जा से जुड़ने जैसे मंत्र, ध्यान या सूर्य को अर्घ्य देने से मन शांत होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है और भीतर की ऊर्जा मजबूत होती है।

ज्योतिष में सूर्य का महत्व 

वैदिक ज्योतिष में सूर्य को वह शक्ति माना जाता है जो व्यक्ति की असली पहचान को उजागर करती है। इसे आत्मा का सूचक कहा गया है, इसलिए किसी की कुंडली में सूर्य की स्थिति यह बताती है कि वह कैसा सोचता है, किस तरह फैसले लेता है और जीवन में किस दिशा में आगे बढ़ सकता है। सेहत, करियर और मानसिक ऊर्जा पर भी सूर्य का असर माना जाता है।

सिंह राशि से जुड़े हैं सूर्य 

ज्योतिष में सूर्य कुछ खास क्षेत्रों से जुड़ा है। सिंह राशि का स्वामी होने के कारण सूर्य साहस, नेतृत्व और आत्मसम्मान जैसे गुणों को प्रभावित करता है। सिंह राशि वालों के स्वभाव में जो दृढ़ता और तेज दिखता है, वह सूर्य से ही जुड़ा माना जाता है। 

कुंडली में पांचवे भाव के स्वामी हैं सूर्य 

इसी तरह सूर्य कुंडली के पांचवे भाव का स्वामी भी होता है, जो रचनात्मकता, बुद्धि और बच्चों के सुख से संबंधित होता है। इसलिए जिन लोगों की कुंडली में सूर्य मजबूत होता है, वे अक्सर आत्मविश्वासी, प्रभावशाली और ऊर्जा से भरे दिखाई देते हैं। वहीं, यदि सूर्य कमजोर हो तो व्यक्ति को सेहत, आत्मसम्मान या निर्णय क्षमता से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।  

जीवन में पहचान, पद, सम्मान और करियर में उन्नति जैसी चीज़ें भी सूर्य के प्रभाव में आती हैं। इसीलिए ज्योतिष में सूर्य को वह ग्रह माना गया है जो दिशा भी देता है और गति भी।

सूर्य देव के जन्म से जुड़ी कथा (Surya Dev Katha) 

ब्रह्म पुराण में बताया गया है कि एक समय ऐसा था जब दुनिया में कहीं कोई रोशनी नहीं थी। अंधकार इतना गहरा था कि दिन और रात का फर्क भी नहीं होता था। उसी दौरान देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। दानव हावी होने लगे और देवता भय से स्वर्ग छोड़कर भाग गए। 

मदद पाने के लिए सभी देवता अपनी माता अदिति के पास पहुँचे। अदिति ने सूर्य की आराधना की और उनसे यह वर माँगा कि वे उनके पुत्र के रूप में जन्म लें। ऐसा कहा जाता है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य की सुशुम्ना नाम की एक किरण, अदिति के गर्भ में प्रवेश कर गई। अदिति ने गर्भ धारण किया और सूर्य की भक्ति में कठोर व्रत करने लगीं।

ऋषि कश्यप ने चिंता व्यक्त की कि इतने कठिन व्रत से गर्भ को हानि हो सकती है। तब अदिति ने अपनी योग शक्ति से गर्भ को एक अंडे के रूप में बाहर निकाल दिया। इससे बहुत दिव्य प्रकाश फैलने लगा, और उसी तेज से एक बालक प्रकट हुआ यही सूर्य देव थे। उनके जन्म के साथ ही पूरे ब्रह्मांड में उजाला फैल गया और दानव भय से भाग खड़े हुए। देवताओं का शासन फिर से स्थापित हो गया।

ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव का जन्म माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था। आज भी यह दिन रथ सप्तमी या सूर्य जयंती के रूप में मनाया जाता है।

सूर्य देव के त्यौहार

पूरे भारत में, भक्त सूर्य देव का सम्मान विभिन्न त्योहारों जैसे छठ पूजा (दिवाली के छह दिन बाद) करते हैं, जिसमें उपवास रखना सूर्योदय और सूर्यास्त के समय नदी के किनारों पर प्रार्थना करते हैं ।


रथ सप्तमी सूर्य की उत्तर दिशा की यात्रा का प्रतीक है, जिसमें सुबह की रस्में और जल अर्पित किया जाता है। मकर संक्रांति पतंग उड़ाकर और पारंपरिक मिठाइयाँ बाँटकर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का मनाया जाता है। पोंगल, तमिलनाडु का फसल उत्सव, दूध और गुड़ के साथ चावल पकाकर सूर्य देव का किया जाता है।

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