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कांशीराम की उत्तराधिकारी बीएसपी सुप्रीमो मायावती का भारतीय राजनीति में एक अलग ही मुकाम है। 2019 लोकसाभा चुनाव में इनका दखल साफ दिखाई देने वाला है। एक गरीब परिवार में जन्मी मायावती का राजनीतिक जीवन दलित राजनीति में समर्पित रहा है। तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार के नारे से अपनी राजनीति की शुरूआत करने वाली मायावती अब तक उत्तरप्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं हैं। 1977 में कांशीमार के संपर्क में आने के बाद मायावती ने पूर्ण कालिक राजनीतिक जीवन को अपनाया। उस दौर में मायावती कांशीराम के सबसे करीबी लोगों में से एक थीं। मायावती अपने सवर्ण विरोधी आंदोलनों व साभाओं के चलते दलित और पिछड़ें वर्ग की सबसे बड़ी नेता के रूप में अपने आप को स्थापित करने में सफल हुई। जिसके कारण उनके समर्थक मायावती के नाम के साथ बहन जोड़कर उन्हें बहन मायावती से संबोधित करने लगें। 2007 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों तक मायावती की सभाओं में सवर्ण विरोधी नारे लगने आम हो गए थे। परंतु 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने एक नया नारा हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश हैं दिया। दरअसल इस नारे से सीधे सवर्ण वोटरों को साधना था और इसी दौरान सतीश चंद्र मिश्र बसपा में शामिल हुए जो वर्तमान में बसपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं। मिश्र के शामिल होने से मायावती को फायदा हुआ। सवर्ण वर्ग ने 2007 विधानसभा चुनाव में बसपा को समर्थन देकर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। मायावती सूबे की मुखिया बनी। परंतु कार्यकाल के दौरान बीएसपी सुप्रीमो ने हरिजन एक्ट कानून पारित किया, जिसके चलते सवर्ण वर्ग में मायावती के प्रति रोष व्याप्त हुआ। 2012 विधानसभा चुनाव में मायावती को इसका खामियाज़ा अपनी सत्ता गंवाकर करना पड़ा। विधानसभा चुनाव में सपा बसपा को धूल चटाने में कामयाब हुई और मायावती को सत्ता से बारह कर सरकार बनाने में कामयाब हुई। लेकिन 2014 में उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली अप्रत्याशित सफलता और 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने से बुआ-बबुआ यानि मायावती और अखिलेश को एक मंच पर आना पड़ा। इसका लाभ इन्हें यह हुआ कि गोरखपुर और फुलपुर में हुए लोकसभा उपचुनावों में भाजपा को मात खानी पड़ी। इसी सूत्र को लगाते हुए 2019 के आम चुनावों में भी बुआ-बबुआ भाजपा को हराने के लिये प्रयासरत हैं। ऐसे में मायावती के लिये सितारे क्या संकेत कर रहे हैं। आइये जानते हैं एस्ट्रोयोगी एस्ट्रोलॉजर्स इस बारे में क्या कहते हैं?