Dattatreya Jayanti 2025: दत्तात्रेय जयंती, जिसे दत्ता जयंती भी कहा जाता है, हर साल मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। भगवान श्री दत्तात्रेय को वह शक्ति माना गया है जो साधकों को सही मार्ग दिखाती है, जीवन को आदर्श और सफल बनाने की प्रेरणा देती है। ऐसा विश्वास है कि श्री दत्तात्रेय की आराधना से पितरों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है या उनके अगले जन्म की यात्रा सरल होती है।
उनके तीन सिर शांति, सामंजस्य और सफलता का प्रतीक माने जाते हैं।
भगवान दत्तात्रेय को देव रूप तथा महान गुरु दोनों माना जाता है। इसलिए उनके भक्त उन्हें श्री गुरुदेवदत्त कहकर पुकारते हैं।
नाथपंथ, सूफी परंपरा, वैष्णव और शैव संप्रदाय – सभी में दत्तात्रेय को गुरु का दर्जा मिला है। उन्हें गुरुस्वामी, गुरुराज, गुरुदेवजी तक कहा गया है। यही कारण है कि वे गुरुओं के गुरु कहलाए।
सामाजिक समता, भाईचारे और समानता की भावना का बीज भी श्री दत्तात्रेय ने ही बोया था।
श्रीमद्भागवत के अनुसार दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से ज्ञान ग्रहण किया और उनके नाम पर ‘दत्त’ परंपरा की स्थापना हुई। दक्षिण भारत में उनके अनेक मंदिर हैं और माना जाता है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर उनका पूजन करने से भक्तों की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
कई धार्मिक ग्रंथों में उन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है। ऐसा भी कहा जाता है कि जब राक्षसी शक्तियों का अत्याचार बढ़ा तो दत्तात्रेय विभिन्न रूपों में अवतरित होकर असुरों का विनाश करते रहे।
दत्तात्रेय जयंती के दिन उनका सिद्धांत दुनिया पर अत्यधिक प्रभावी होता है। श्रद्धा और भक्ति के साथ की गई उनकी पूजा से जीवन की कई बड़ी समस्याएँ कम हो जाती हैं।
गुरुवार, 4 दिसंबर 2025
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 4 दिसंबर 2025, सुबह 08:37 बजे से,
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 5 दिसंबर 2025, सुबह 4:43 बजे तक।
इस दिन साधक सुबह जल्दी उठकर पवित्र जल से स्नान करते हैं और व्रत रखते हैं। पूजा में फूल, अगरबत्ती, दीपक और मिठाई का उपयोग होता है। भक्तजन दत्तात्रेय पर आधारित ग्रंथ — अवधूत गीता, जीवनमुक्त गीता — का पाठ करते हैं।
भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति/चित्र पर चंदन, रोली और हल्दी लगाएं
दीप जलाएं और प्रसाद रखें
सात बार प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करें
आरती करें और प्रसाद बांटें
मंत्र जाप करें:
“श्री गुरु दत्तात्रेयाय नमः”
“ॐ श्री गुरूदेव दत्त”
“हरी ॐ तत्सत जय गुरु दत्ता”
इन मंत्रों का जप मन और आत्मा दोनों को पवित्र करता है।
भक्त इस दिन दत्त महात्म्य, दत्त प्रबोध, गुरु चरित्र का पाठ करते हैं और पाँच दिन तक भजन-कीर्तन भी करते हैं।
कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात के दत्तात्रेय मंदिरों में यह पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। माणिक प्रभु पीठ में तो 7 दिन का महोत्सव होता है।
यह व्रत विशेष रूप से उन भक्तों द्वारा किया जाता है जो दत्तात्रेय को त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) का संयुक्त अवतार मानते हैं।
अनाज और भारी भोजन से दूर रहते हैं
फल, दूध और सात्त्विक आहार लिया जाता है
तामसिक भोजन — प्याज, लहसुन, मांस — पूरी तरह वर्जित
कई भक्त निर्जला व्रत भी रखते हैं, जिसमें पूरा दिन न तो खाना होता है, न पानी पिया जाता है
यह माना जाता है कि कठोर व्रत से भक्त की आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है और भगवान दत्तात्रेय का विशेष आशीर्वाद मिलता है।
मन की एकाग्रता बढ़ती है
नया सीखने की क्षमता मजबूत होती है
जीवन में समर्पण, अनुशासन और निरंतरता आती है
दत्तात्रेय भक्तों को शक्ति, ज्ञान और धैर्य प्रदान करते हैं
अहंकार कम होता है, और मनुष्य में प्रेम, करुणा और सरलता बढ़ती है
दत्तात्रेय उपनिषद में बताया गया है कि इस जयंती पर पूजा करने से:
धन संबंधी इच्छाएँ पूरी होती हैं
जीवन के उद्देश्य और लक्ष्य स्पष्ट होते हैं
भय और चिंता दूर होती है
पितृ दोष में राहत मिलती है
मानसिक कष्ट कम होते हैं
सही मार्ग पर चलने की शक्ति मिलती है
भक्त कर्म बंधनों से मुक्ति की ओर बढ़ते हैं
आध्यात्मिक सोच और साधना के प्रति रुचि बढ़ती है
श्री दत्तात्रेय, अत्रि ऋषि और अपनी पतिव्रता पत्नी अनसूया के पुत्र थे। अनसूया को सबसे पवित्र और आदर्श स्त्री माना गया है।
कथा इस प्रकार है:
एक बार नारद मुनि त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) से नहीं मिल पाए और उनकी पत्नियों — सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती — से मिले। नारद जी ने देवियों से कहा कि अनसूया जैसी पवित्र और धर्मनिष्ठ पत्नी संसार में कोई नहीं। देवियाँ ईर्ष्या और अहंकार से भर गईं और अपने पतियों से अनसूया की सती धर्म की परीक्षा लेने को कहा।
त्रिदेव साधु का भेष बनाकर अत्रि मुनि के आश्रम पहुँचे। अनसूया ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया। देवताओं ने शर्त रखी कि वे तभी भोजन करेंगे जब अनसूया उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएंगी।
अनसूया ने अपनी पवित्रता और तप से मंत्र बोलकर तीनों को बच्चों में बदल दिया और उन्हें भोजन कराया। बाद में अत्रि ऋषि ने उन बच्चों को उठाया तो वे तीन सिर और छह हाथ वाले एक दिव्य बालक रूप में बदल गए।
देवियाँ अपनी गलती समझकर क्षमा मांगने आईं। इसके बाद त्रिदेव अपने वास्तविक रूप में आए और अत्रि-अनसूया को दत्तात्रेय पुत्र रूप में वरदान दिया।
दत्तात्रेय को विष्णु का अवतार माना गया, जबकि उनके भाई चंद्रदेव ब्रह्मा के और दुर्वासा ऋषि शिव के अंश माने जाते हैं।
भगवान दत्तात्रेय में त्रिदेव की संयुक्त शक्तियाँ मानी जाती हैं। उनके छह हाथों में:
शंख
चक्र
गदा
त्रिशूल
कमंडल
भिक्षापात्र
महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश में दत्तात्रेय जयंती बहुत भक्ति और उत्साह से मनाई जाती है। भक्त सुबह स्नान कर दत्तात्रेय की पूजा करते हैं, मंदिर जाते हैं और भजन कीर्तन करते हैं।
विश्वास है कि पूरी श्रद्धा और समर्पण से उनकी आराधना करने पर भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।






| दिनाँक | Friday, 05 December 2025 |
| तिथि | कृष्ण प्रतिपदा |
| वार | शुक्रवार |
| पक्ष | कृष्ण पक्ष |
| सूर्योदय | 6:59:56 |
| सूर्यास्त | 17:24:17 |
| चन्द्रोदय | 17:36:51 |
| नक्षत्र | मृगशिरा |
| नक्षत्र समाप्ति समय | 32 : 50 : 25 |
| योग | साध्य |
| योग समाप्ति समय | 27 : 48 : 43 |
| करण I | कौलव |
| सूर्यराशि | वृश्चिक |
| चन्द्रराशि | वृष |
| राहुकाल | 10:54:04 to 12:12:06 |