Guru Gobind Singh Jayanti 2025

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Guru Gobind Singh Jayanti 2025: गुरु गोबिंद सिंह जी की 359वीं जयंती वर्ष 2025 में शनिवार, 27 दिसंबर को मनाई जाएगी। यह सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि उस दिव्य क्षण की स्मृति है जब एक ऐसे वीर, ज्ञानवान और करुणामय गुरु ने जन्म लिया, जिनकी प्रेरणा आज भी दुनिया को दिशा देती है।

यह दिन हमें याद दिलाता है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन से अडिग साहस, न्याय के लिए संघर्ष और धर्म की रक्षा का जो संदेश दिया, वह समय के हर पड़ाव पर उतना ही प्रासंगिक है। 27 दिसंबर का यह उत्सव उनके अद्भुत व्यक्तित्व को नमन करने का अवसर है।

359वीं जयंती हमें उनके आदर्शों पर दोबारा सोचने का मौका देती है—कि हम कैसे उनके बताए मार्ग पर चलते हुए अपने जीवन और समाज को बेहतर बना सकते हैं। यह दिन भक्तों के लिए भक्ति, सेवा और आत्मचिंतन का सुयोग है, जो हर वर्ष नई ऊर्जा और प्रेरणा लेकर आता है।

गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2025 कब है (Guru Gobind Singh Jayanti 2025 kab hai)

गुरु गोबिंद सिंह जी की 359वीं जयंती वर्ष 2025 में शनिवार, 27 दिसम्बर को मनाई जाएगी।

हिन्दू पंचांग के अनुसार:

  • सप्तमी तिथि प्रारंभ: 26 दिसम्बर 2025, दोपहर 01:43 बजे

  • सप्तमी तिथि समाप्त: 27 दिसम्बर 2025, दोपहर 01:09 बजे

हालाँकि सामान्यत: लोग 5 जनवरी (1666 के जन्म दिवस) को भी याद करते हैं, लेकिन जयंती नानकशाही कैलेंडर के अनुसार मनाई जाती है, इसी वजह से वर्षों में तारीख बदलती रहती है।

गुरु गोबिंद सिंह कौन थे? (Guru Gobind Singh Kaun The)

गुरु गोबिंद सिंह, सिखों के दसवें और अंतिम मानव गुरु, सिर्फ एक आध्यात्मिक पुरुष नहीं थे। वह एक योद्धा, कवि, दार्शनिक, आध्यात्मिक मार्गदर्शक और एक महान राष्ट्र-निर्माता थे।

जन्म – 5 जनवरी 1666, पटना साहिब (बिहार)

माता-पिता – गुरु तेज बहादुर जी और माता गुजरी जी

बचपन का नाम था – गोविंद राय।

कम उम्र में ही उनका जीवन संघर्ष और बलिदानों से भर गया, और यहीं से उनकी आध्यात्मिकता और वीरता का मार्ग तैयार हुआ।

गुरु गोबिंद सिंह का प्रारंभिक जीवन 

गुरु गोबिंद सिंह के जीवन की शुरुआत ही विपरीत परिस्थितियों में हुई। चार साल की उम्र तक वे पटना में रहे, फिर परिवार के साथ पंजाब लौट आए। शिक्षा के दौरान उनके अंदर धर्म, परोपकार और न्याय के विचार गहराई से विकसित हुए।

1675 में उनके जीवन में सबसे बड़ा बदलाव आया, जब उनके पिता गुरु तेज बहादुर को मुगल शासक औरंगज़ेब द्वारा शहीद कर दिया गया। पिता की शहादत का असर इतना गहरा था कि मात्र 9 साल की उम्र में गोविंद राय को सिख समुदाय का 10वां गुरु घोषित किया गया।

खालसा पंथ की स्थापना – साहस का नया अध्याय (Khalsa Panth ki Sthapna – Saahas ka Naya Adhyay)

1699 का बैसाखी का दिन सिख इतिहास का सबसे अहम क्षण माना जाता है। इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की – एक ऐसा योद्धा समुदाय जो धर्म, सत्य, न्याय और मानवता की रक्षा के लिए हमेशा खड़ा रहे।

खालसा के पाँच ककार :

  • केश– बिना कटे बाल

  • कंघा– लकड़ी का कंघा

  • कड़ा– लोहे का कड़ा

  • कच्छेरा– सूती वस्त्र

  • कृपाण– आत्मरक्षा हेतु तलवार

यह सिर्फ धार्मिक प्रतीक नहीं थे, बल्कि एक अनुशासित, साहसी और चरित्रवान जीवन की पहचान थे।

गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादे (Guru Gobind Singh ke Chaar Sahibzaade)

गुरु गोबिंद सिंह का जीवन मानो बलिदान की परिभाषा हो। उन्होंने अपने चारों पुत्रों (साहिबजादों) को धर्म और मानवता के लिए समर्पित कर दिया।

  1. बाबा अजीत सिंह (17 वर्ष)– मुगल सेना से युद्ध में वीरगति

  2. बाबा झुझार सिंह (13 वर्ष)– अपने बड़े भाई के साथ शहीद

  3. बाबा जोरावर सिंह (9 वर्ष)– धर्म बदलने से इंकार करने पर दीवार में जीवित चुनवा दिए गए

  4. बाबा फतेह सिंह (5 वर्ष)– छोटे भाई के साथ शहीद

इतिहास में ऐसी मिसाल बहुत कम मिलती है, जहाँ एक ही गुरु ने अपने सभी पुत्रों का बलिदान धर्म के लिए दिया हो।

गुरु गोबिंद सिंह का साहित्यिक योगदान

गुरु साहब सिर्फ युद्ध-वीर नहीं थे, बल्कि उत्कृष्ट कवि और दार्शनिक भी थे। उनकी रचनाओं में निर्भयता, दैवीय शक्ति और मानवता की गहरी समझ झलकती है।

महत्वपूर्ण लेखन:

  • चंडी दी वार

  • ज़ਫरनामा

  • बिचित्र नाटक

ये ग्रंथ आत्मबल, धर्म और न्याय का मार्ग दिखाते हैं।

गुरु गोबिंद सिंह की शहादत (Guru Gobind Singh ki Shahadat)

1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद गुरु गोबिंद सिंह को बहादुर शाह ने चर्चा के लिए बुलाया, लेकिन वास्तविक मुद्दों पर बातचीत नहीं हुई। इसी बीच वज़ीर खान ने अपने साथियों के साथ षड्यंत्र रचकर गुरु साहब पर हमला करवा दिया।

हमले में वे गंभीर रूप से घायल हुए। फिर भी उन्होंने हमलावर को मार गिराया। अंत में 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड़ (महाराष्ट्र) में उन्होंने शरीर त्याग दिया।

लेकिन उनसे पहले वह कह चुके थे – “अब से गुरु ग्रंथ साहिब ही सिखों का जीवित गुरु होगा।”  यही सिख परंपरा आज तक कायम है।

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गुरु गोबिंद सिंह जयंती क्यों मनाई जाती है (Guru Gobind Singh Jayanti kyon manai jaati hai)

यह दिन सिर्फ जन्म उत्सव नहीं, बल्कि उन मूल्यों को याद करने का मौका है जो गुरु साहब ने दुनिया को दिए:

  • अत्याचार का डटकर मुकाबला

  • न्याय के लिए खड़े होना

  • धर्म और मानवता की रक्षा

  • निस्वार्थ सेवा

  • अनुशासन और मर्यादा

  • समानता का सिद्धांत

गुरु गोबिंद सिंह जी ने जीवन का हर पल समाज के लिए जिया। उनकी शिक्षाएँ आज भी हर व्यक्ति को प्रेरित करती हैं कि जीवन कितना भी कठिन क्यों न हो, सत्य से समझौता नहीं करना चाहिए।

गुरु गोबिंद सिंह जयंती के प्रमुख उत्सव (Guru Gobind Singh Jayanti ke Pramukh Utsav)

यह पर्व पूरे भारत, विशेषकर पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र और बिहार में बड़े सम्मान के साथ मनाया जाता है।

1. अखंड पाठ- जयंती से लगभग दो दिन पहले गुरुद्वारों में निरंतर पाठ आरंभ होता है।

2. प्रभात फेरी- सुबह-सुबह श्रद्धालु गुरु ग्रंथ साहिब के कीर्तन के साथ जुलूस निकालते हैं।

3. नगर कीर्तन

  • पांच प्यारे (Panj Pyare) शोभायात्रा का नेतृत्व करते हैं।

  • गुरबानी, कीर्तन, गतका और शस्त्र विद्या का प्रदर्शन होता है।

  • गुरु ग्रंथ साहिब पालकी पर सजाया जाता है।

4. लंगर- धर्म, जाति, वर्ग की परवाह किए बिना सभी एक साथ भोजन करते हैं—यही है मानवता और समानता का संदेश।

5. विशेष अरदास- गुरुद्वारों में गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित प्रवचन और अरदास होती है।

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गुरु गोबिंद सिंह की शिक्षाएँ (Guru Gobind Singh ki Shikshaye)

गुरु गोबिंद सिंह जी की सीखें आज भी बिल्कुल प्रासंगिक हैं:

1. अन्याय के खिलाफ खड़े रहो

उन्होंने सिखाया कि अन्याय को सहना भी पाप है।

2. साहस सबसे बड़ा अस्त्र है

निडर होकर जीना ही असली स्वतंत्रता है।

3. सदा सत्य बोलो और सत्य का साथ दो

4. सेवा ही सच्ची भक्ति है

5. समानता और भाईचारा

गुरु गोबिंद सिंह ने समाज में भेदभाव के हर रूप का विरोध किया।

गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2025 का सार (Guru Gobind Singh Jayanti 2025 ka Saar)

साल 2025 में मनाई जाने वाली गुरु गोबिंद सिंह जयंती हमें एक बार फिर से यह याद कराती है कि:

  • साहस का दूसरा नाम गुरु गोबिंद सिंह

  • न्याय की राह से डटकर चलना

  • जीवन में अनुशासन और परोपकार जरूरी

  • बलिदान का असली अर्थ वही जानते हैं जिनके जीवन में लक्ष्य बड़ा होता है

गुरु साहब का जीवन संघर्षों से भरा हुआ जरूर था, लेकिन उन्होंने कभी सिर नहीं झुकाया। आज भी दुनिया में जहाँ भी मानवता पर संकट आता है, लोग गुरु गोबिंद सिंह जी की शिक्षाओं और बलिदानों से प्रेरणा लेते हैं।

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